ग्वालियर । पुरानी एक कहावत है कि कला कभी उम्र की मोहताज नहीं होती। यह कहावत ग्वालियर के 70 साल के विमलचन्द्र जैन पर चरितार्थ हो रही है। वैसे तो यह उम्र रिटायर्ड होकर अपने बच्चों के साथ आराम की जिंदगी जीने की है, लेकिन विमलचन्द्र जैन इसके विपरीत हैं। इस उम्र में भी काम के प्रति उनका जुनून देखते ही बनता है।
बल्ब और पतले कांच पर छेनी हथोड़ा मारकर विमल चंद्र जैन लिख देते हैं नाम -
जानकर हैरानी होगी कि बल्ब के पतले कांच पर वह छैनी हथौड़े मार-मारकर वह चंद मिनट में नाम, मंत्र या चित्र उकेर देते हैं। नक्काशी भी ऐसी करते हैं, देखने वाले दांतों तले उंगली दबा लें। सिर्फ 30 मिनट में बल्ब पर जैन ने मंत्र लिख देते है । उनकी इस कला के कायल शहर के लोग ही नहीं, बल्कि देश के अन्य शहरों और विदेशी भी हैं। देश के कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, जयपुर सहित अन्य बड़े शहरों में वह अपने हुनर का लोहा मनवाया है।
विमल चंद्र जैन दानाओली इलाके में रहते हैं। वह कहते हैं कि इसकी शुरुआत 15 साल की उम्र में हो गई थी। जब उन्होंने बाजार में बर्तन की दुकानों पर काम करना शुरू किया। करीब 55 साल पहले तब मशीन भी नहीं होती थीं। बर्तन पर नाम और पता लिखवाने का चलन था, इसलिए छैनी और हथौड़े की मदद से यह नक्काशी और लिखावट लिखी जाती थी। 55 साल पहले हाथ में छैनी हथौड़े पकड़े, तो आज तक नहीं छूट पाए। पहले कांसे, फिर तांबे और उसके बाद स्टील के बर्तन से चला सफर अब बल्ब के बारीक कांच पर नक्काशी तक पहुंच गया है। विमल चन्द्र जैन बताते हैं, शुरुआत में जब उन्होंने कांच पर नक्काशी करने का प्रयास किया, तो पहले मोटे कांच का उपयोग किया, लेकिन जैसे ही कांच पर छैनी रखकर हथौड़े से मारा तो कांच टूट गया। इसके बाद उन्होंने लगातार कोशिश की और सफलता हासिल की।
धीरे-धीरे उनके इस आर्ट की बढ़ने लगी डिमांड -
धीरे-धीरे उनके इस आर्ट की डिमांड शहर के साथ-साथ देश के अन्य शहरों में भी होने लगी। उनके बनाए हुए इस आर्ट का डिस्प्ले देशभर में हो चुका है। अभी तक वह कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, जयपुर, उदयपुर, राजकोट सहित कई शहरों में अपनी कला का प्रदर्शन कर सम्मान पा चुके हैं। उनका प्रयास था कि कुछ नया करें, इसलिए वह बर्तनों पर नाम लिखने के बाद शील्ड और ट्रॉफियों पर नाम लिखने लगे। वहीं इसके बाद पाषाण, अष्टधातु और ग्रेनाइट पर लिखना शुरू किया।