मुंबई, 14 अक्टूबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु में शराब दुकान लाइसेंस से जुड़े TASMAC घोटाले मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की छापेमारी पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने ED से पूछा कि क्या वे राज्य पुलिस की शक्तियों में दखल नहीं दे रहे हैं और क्या राज्य अपनी जांच नहीं कर सकता। CJI बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा कि इससे संघीय ढांचे पर क्या असर पड़ेगा, यह भी महत्वपूर्ण है। मालूम हो कि ED ने मार्च में TASMAC के चेन्नई स्थित मुख्यालय पर ₹1,000 करोड़ के घोटाले की जांच के तहत छापेमारी की थी। आरोप में शराब की बोतलों की कीमत बढ़ाना, टेंडर में हेराफेरी और रिश्वतखोरी शामिल थी। इस दौरान कंप्यूटर और अन्य सामान जब्त किए गए थे। राज्य सरकार और TASMAC ने इसके बाद दावा किया कि ED की कार्रवाई अवैध थी और इसकी शक्तियों का दुरुपयोग हुआ। मामला मद्रास हाइकोर्ट पहुंचा, जिसने ED को जांच जारी रखने की अनुमति दी थी।
सुप्रीम कोर्ट में ED की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने दलील दी कि मीडिया आमतौर पर केंद्रीय एजेंसी के पक्ष में रिपोर्ट नहीं करता और इस मामले में 47 FIR दर्ज की गई हैं। उन्होंने कहा कि TASMAC में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं मिली हैं और यह केवल कानून-व्यवस्था का मामला नहीं, बल्कि वित्तीय अपराध है। राज्य की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि सरकारी कंपनी पर छापा कैसे मारा जा सकता है, जबकि TASMAC ने खुद कार्रवाई का आदेश दिया था। रोहतगी ने कहा कि जब्त की गई चीजें नागरिकों के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का उल्लंघन कर सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या ED राज्य की जांच के अधिकार का अतिक्रमण कर रही है और क्या जब राज्य जांच नहीं कर रहा, ED को खुद हस्तक्षेप करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह मुद्दा केंद्र और राज्य की शक्तियों की सीमाओं से जुड़ा है और किसी तरह का वाद-विवाद प्रतियोगिता नहीं है। इसके अलावा, ED ने शराब दुकानों और लाइसेंस देने में भ्रष्टाचार का हवाला दिया और कहा कि राज्य के संरक्षण के कारण इसे रोकना मुश्किल हो रहा है। तमिलनाडु सरकार और TASMAC ने सुप्रीम कोर्ट का रुख इसलिए किया क्योंकि 6 और 8 मार्च 2025 के बीच ED ने 60 घंटे की कार्रवाई की थी, जिसमें कई जब्तियां की गईं। याचिका में ED की कार्रवाई को चुनौती दी गई और कहा गया कि किसी FIR में TASMAC को आरोपी नहीं बनाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने 22 मई को सुनवाई में कहा था कि ED ने हदें पार कर दी हैं और राज्य की जांच के समय हस्तक्षेप करना संघीय ढांचे का उल्लंघन है।