बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) को मिली करारी हार के बाद, पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की छोटी बेटी रोहिणी आचार्य अचानक से सुर्खियों में हैं। दिसंबर 2022 में अपने पिता की जान बचाने के लिए अपनी एक किडनी दान करने के बाद रोहिणी की सोशल मीडिया पर खूब तारीफ हुई थी, और उन्हें 'बेटी हो तो रोहिणी जैसी' कहा गया था। हालांकि, अब वह परिवार से बढ़ती दूरी, भाई तेजस्वी यादव से कथित विवाद और सोशल मीडिया पर किए गए तीखे खुलासों के कारण चर्चा में हैं।
किडनी दान के बाद एक समय था जब रोहिणी आचार्य परिवार की राजनीति और पिता के फैसलों का लगातार समर्थन करती थीं। लेकिन पिछले कुछ महीनों से उनके सोशल मीडिया पोस्ट्स में एक अलग ही रुख देखने को मिल रहा था, जो अब खुलकर सामने आ गया है। बिहार चुनाव के नतीजे आने के तुरंत बाद, रोहिणी आचार्य ने अपने परिवार से सभी रिश्ते खत्म करने का ऐलान कर दिया, जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।
किडनी दान पर लगे गंभीर आरोप
चुनाव नतीजों के बाद, रोहिणी आचार्य ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर अपने भाई तेजस्वी यादव और RJD के कुछ अन्य नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि पिता को किडनी दान करने के बावजूद उन्हें अब तिरस्कार का सामना करना पड़ रहा है। सबसे चौंकाने वाला आरोप यह था कि उनकी किडनी को 'गंदी किडनी' तक कहा गया और यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने यह सब चुनावी फायदे और पैसे के लिए किया था। एक भावनात्मक पोस्ट में, रोहिणी ने देश की सभी बेटियों और महिलाओं से मार्मिक अपील की: "सभी बेटियों और बहनों से कहना चाहूंगी कि अगर आपके मायके में कोई बेटा या भाई है, तो कभी भी अपने भगवान जैसे पिता को बचाने के लिए आगे ना बढ़ें। बल्कि इसके बजाय अपने भाई या घर का बेटा ही अपनी या किसी जानने वाले की किडनी लगवाए।"
रोहिणी के बयान में छिपा लैंगिक असमानता का कड़वा सच
रोहिणी आचार्य की बातें भले ही पारिवारिक कलह की ओर इशारा करती हैं, लेकिन उनकी यह अपील भारत में अंग दान (ऑर्गन डोनेशन) में व्याप्त लैंगिक असमानता के कड़वे सच को उजागर करती है। रोहिणी की बात को लोग भले ही कटाक्ष समझ रहे हों, लेकिन यह सच है कि पारिवारिक लिवर या किडनी दान की ज़रूरत पड़ने पर, ज़्यादातर महिलाएं ही आगे आती हैं।
नेशनल ऑर्गन और टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (NOTTO) के आंकड़े इस असमानता को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं:
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डोनर (अंग दाता): 2019 से 2023 के बीच, जीवित रहते हुए अंग दान करने वालों में से लगभग 64% महिलाएं थीं।
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रिसीवर (अंग प्राप्तकर्ता): इसी अवधि में, अंग प्राप्त करने वाले लोगों में 70% पुरुष थे।
पिछले पांच वर्षों में कुल 56,509 अंग दान हुए, जिनमें से 36,038 महिलाएं डोनर थीं, लेकिन उन्हें सिर्फ लगभग 30% ट्रांसप्लांट ही मिला। इसके विपरीत, पुरुषों को 17,041 की तुलना में 39,447 अंग मिले। यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि समाज पुरुषों के जीवन को प्राथमिकता देता है और अंग दान के लिए महिलाओं पर निर्भर रहता है, जो किसी भी मेडिकल कारण से नहीं समझा जा सकता। ग्लोबल डेटाबेस ऑन एंजड ट्रांसप्लांटेशन (GOTD) के अनुसार, यह लैंगिक असमानता केवल भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी मौजूद है, जहां 2017 में केवल 36% महिला मरीजों को ही अंग प्राप्त हुआ था।