नरेंद्र मोदी अपने तीन दिवसीय यूरोप दौरे के आखिरी दिन पहुंचे फ्रांस, फ्रांस भारत का महत्वपूर्ण डिफेंस पार्टनर

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Posted On:Wednesday, May 4, 2022

मुंबई, 4 मई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीन दिवसीय यूरोप दौरे के आखिरी दिन फ्रांस पहुंचें। इससे पहले मोदी जर्मनी और डेनमार्क जा चुके हैं। ये इस साल PM मोदी का पहला विदेशी दौरा है। मोदी के फ्रांस दौरे की योजना इमैनुएल मैक्रों के 24 अप्रैल को एक मुश्किल चुनाव में दोबारा फ्रांस का राष्ट्रपति चुने जाने के बाद बनाई गई थी। भारत के फ्रांस के साथ रिश्ते बेहद करीबी रहे हैं। 1998 में इन दोनों देशों ने रणनीतिक साझेदारी के दौर में प्रवेश किया था, जिनमें रक्षा और सुरक्षा सहयोग, अंतरिक्ष सहयोग और असैन्य परमाणु सहयोग जैसे क्षेत्र शामिल हैं। फ्रांस लंबे समय से भारत का महत्वपूर्ण डिफेंस पार्टनर रहा है। हाल ही में भारत-फ्रांस के बीच हुई राफेल फाइटर प्लेन डील बहुत चर्चा में रही थी। इसके अलावा फ्रांस के मिराज फाइटर प्लेन लंबे समय से इंडियन एयरफोर्स की ताकत रहे हैं। वैसे तो रूस भारत का सबसे बड़ा डिफेंस पार्टनर है और भारत अपने सबसे ज्यादा हथियार रूस से खरीदता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत ने फ्रांस से जमकर हथियार खरीदे हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार खरीदार है। 

आपको बता दे स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-2021 के दौरान रूस के बाद फ्रांस भारत का दूसरा सबसे बड़ा हथियार सप्लायर रहा। 2016-2020 के दौरान भारत की फ्रांस से हथियारों की खरीद में 709% की बढ़ोतरी हुई। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2017-2021 के दौरान भारत की रूस से हथियार सप्लाई में 47% तक की गिरावट आई, जबकि इस दौरान भारत की फ्रांस से हथियार खरीद में 10 गुना बढ़ोतरी हुई। फ्रांस भारत को कई मारक हथियार सप्लाई कर चुका है। इनमें मिराज से लेकर राफेल तक घातक फाइटर प्लेन शामिल हैं। मिराज से भारत ने 1999 में कारगिल में पाकिस्तान के दांत खट्टे किए थे। वहीं राफेल की क्षमता से चीन भी थर्राता है। 

फ्रांस के भारत को दिए प्रमुख हथियारों पर।

राफेल: भारत ने 2016 में फ्रांस से 36 राफेल फाइटर प्लेन की खरीद के लिए 7.87 अरब यूरो, यानी करीब 59 हजार करोड़ रुपए का समझौता किया था। फरवरी 2022 तक भारत को 35 राफेल मिल चुके हैं। राफेल एक ओमनी रोल फाइटर प्लेन है, जिसे पहाड़ पर बेहद कम जगह में भी उतार सकते हैं और समुद्र में चलते हुए युद्धपोत पर भी उतारा जा सकता है। राफेल की एक और खासियत हवा में उड़ान भरते हुए फ्यूल भरने की है। एक बार फ्यूल भरने पर यह लगातार 10 घंटे उड़ान भर सकता है। राफेल का निर्माण भी मिराज बनाने वाली फ्रेंच कंपनी दसॉ एविएशन ने किया है। राफेल कई घातक हथियार और मिसाइल ले जाने में सक्षम, दुनिया के सबसे आधुनिक फाइटर प्लेन में से एक है। इसे भारतीय सेना के लिए रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण अंबाला एयर फोर्स स्टेशन पर तैनात किया गया है, जो दूरी के लिहाज से पाकिस्तान और चीन दोनों के करीब पड़ता है। राफेल को अपनी स्पीड, हथियार ले जाने की क्षमता और आक्रमण क्षमता की वजह से जाना जाता है। ये सिंगल और डुअल सीटर दोनों विकल्पों के साथ आता है। भारत ने 28 सिंगल और 8 डुअल सीटर राफेल खरीदे हैं। राफेल की मारक रेंज 3,700 किलोमीटर है। इसमें तीन तरह की मिसाइलें लगाई जा सकती हैं। हवा से हवा में मार करने वाली मीटियोर, हवा से जमीन पर मार करने वाली स्कैल्प और हैमर मिसाइल। राफेल स्टार्ट होते ही महज एक सेकेंट में 300 मीटर ऊचाई पर पहुंच सकता है। यानी एक ही मिनट में राफेल 18 हजार मीटर की ऊंचाई तक पहुंच जाता है। इसका रेट ऑफ क्लाइंब चीन-पाकिस्तान के पास मौजूद आधुनिक फाइटर प्लेन्स से भी बेहतर है।राफेल कई मामलों में चीन के सबसे ताकतवर फाइटर प्लेन J20 और पाकिस्तान के F-16 से बेहतर है। चीन के J20 को वास्तविक लड़ाई का अनुभव नहीं है, जबकि फ्रेंच एयर फोर्स राफेल का इस्तेमाल अफगानिस्तान, लीबिया और माली में कर चुकी है। वहीं चकमा देने की लड़ाई में राफेल अमेरिका में बने पाकिस्तानी F-16 फाइटर प्लेन को भी मात दे सकता है। 

मिराज 2000: ये इंडियन एयरफोर्स के सबसे बेहतरीन और घातक फाइटर जेट्स में से एक है। मिराज-2000 को फ्रांस की कंपनी दसॉ एविएशन ने बनाया है। इसने अपनी पहली उड़ान 1978 में भरी थी और 1984 में फ्रेंच एयर फोर्स में शामिल हुआ था। मिराज को इंडियन एयरफोर्स में पहली बार 1985 में शामिल किया गया था। इंडियन एयरफोर्स ने इसका नाम वज्र रखा है। भारत ने 1982 में फ्रांस से 36 सिंगल सीटर और 4 ट्विन सीटर मिराज 2000 की खरीद के ऑर्डर किए थे। भारत ने ये फैसला पाकिस्तान को अमेरिका से F-16 फाइटर जेट की खरीद के बाद किया था। भारत ने 2004 में 10 और मिराज की खरीद का ऑर्डर दिया था, जिससे इंडियन एयरफोर्स में मिराज की संख्या 50 तक पहुंच गई थी।

SEPECAT जगुआर: जगुआर फाइटर जेट को ब्रिटिश रॉयल एयर फोर्स और फ्रेंच एयर फोर्स ने मिलकर बनाया है। अब जगुआर के अपग्रेडेड वर्जन का इस्तेमाल केवल इंडियन एयरफोर्स ही कर रही है। भारत ने जगुआर का पहला ऑर्डर 1978 में दिया था और उसे 35 जगुआर की पहली खेप 1981 में मिली थी। 90 के दशक में जगुआर देश के एयर डिफेंस की ताकत रहा और कई लड़ाइयों में अहम भूमिका निभाई, जिनमें निगरानी और बमबारी दोनों कार्य शामिल हैं।  भारतीय जगुआर ब्रिटिश जगुआर से थोड़ा अलग है, जिसका निर्माण देश में ही हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ब्रिटेन और फ्रांस के साथ लाइसेंस एग्रीमेंट के तहत करता है। IAF ने हाल ही में अपने पूरे जगुआर बेड़े में एवियोनिक्स सपोर्ट जोड़ते हुए उसे अपग्रेड किया है। इसकी बेहद कम ऊंचाई पर उड़ने, रडार को चकमा देने और टारगेट पर सटीक निशाना लगाने की क्षमता खास बनाती है। इंडियन एयरफोर्स में इसे शमशेर नाम से जाना जाता है। जगुआर का इस्तेमाल IAF मुख्य रूप से ग्राउंड अटैक एयरक्राफ्ट के रूप में करती है।

HAMMER (हैमर) मिसाइल: HAMMER यानी हाइली एजाइल मॉड्यूल म्यूनेशन एक्सटेंडेड रेंज एक एयर-टु-सरफेस मिसाइल है, जिसे फ्रांस के सैफरैन (Safran) ग्रुप ने बनाया है। हैमर एक फायर एंड फरगेट मिसाइल है और एक ही समय में कई निशानों को भेद सकती है। ये गतिशील और स्थिर दोनों टारगेट को भेदने में सक्षम है। हैमर में 125 किलो से लेकर 1,000 किलो तक के कई तरह के बम लगाए जा सकते हैं। हैमर मिसाइल का इस्तेमाल कम ऊंचाई और भारत-चीन सीमा के पहाड़ी इलाकों जैसी जगहों पर किया जा सकता है। भारत ने हाल ही में फ्रांस से अपने लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस में इंटीग्रेड करने के लिए हैमर मिसाइलों को खरीदने का करार किया है। फ्रांस ने राफेल के साथ भारत को कुछ हैमर मिसाइलें दी हैं। तेजस में हैमर मिसाइल इंटीग्रेड होने के बाद ये 70 किलोमीटर तक की रेंज में जमीनी टारगेट और बड़े बंकरों को तबाह करने में सक्षम होगा। भारत ने ये कदम चीन के साथ हालिया सीमा विवाद के बीच उठाया है। 

स्कॉर्पीन-क्लास सबमरीन: भारत ने 2005 में फ्रांस के नवल ग्रुप से स्कॉर्पीन-क्लास सबमरीन बनाने के लिए 3.75 अरब डॉलर, यानी करीब 28.6 हजार करोड़ का समझौता किया था। स्कॉर्पीन श्रेणी की सबमरीन युद्ध के कई तरह के मिशन को अंजाम दे सकती हैं। ये सबमरीन एंटी-सरेफस, एंटी-सबमरीन वॉरफेयर, स्पेशल ऑपरेशन, खुफिया जानकारी इकट्ठा करना, माइंस बिछाने के काम आ सकती हैं। इन सबमरीन को पब्लिक सेक्टर की कंपनी मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स ने फ्रांस के सहयोग से स्वेदश में ही बनाया है। अप्रैल 2022 में भारत ने स्कॉर्पीन क्लास की छठी और आखिरी सबमरीन INS वाग्शीर को लॉन्च किया है, जिसके 2024 तक इंडियन नेवी में शामिल होने की उम्मीद है।स्कॉर्पीन सबमरीन के नेवी के प्रोजेक्ट 75 के तहत भारतीय नेवी ने पहली सबमरीन दिसंबर 2017 में INS कलवरी के रूप में शामिल की थी। अब तक इस प्रोजेक्ट के तहत चार सबमरीन इंडियन नेवी में शामिल हो चुकी हैं- INS कलवरी (दिसंबर 2017), INS खंडेरी (सितंबर 2019), INS करनज (मार्च 2021) और INS वेला (नवंबर 2021) पांचवी सबमरीन INS वागीर को नवंबर 2020 में लॉन्च किया गया था और इसका ट्रायल चल रहा है, इसके 2022 के अंत तक नेवी में शामिल होने की उम्मीद है।

 


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