हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद के शिष्य रहे हॉकी खिलाड़ी टेकचंद यादव आज दो वक्त के भोजन के लिए तरस रहे हैं. गरीबी ने न सिर्फ उन्हें सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है, बल्कि उनके रिश्तेदार भी इलाज के अभाव में दम तोड़ चुके हैं, लेकिन सरकार का ऐसे खिलाड़ियों से कोई लेना-देना नहीं है. हालाँकि, हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी को हमेशा उपेक्षित किया गया है, और इसके खिलाड़ियों को भी। वहीं दूसरी तरफ सरकार ही नहीं जनता भी क्रिकेटरों पर प्यार और पैसों की बरसात कर रही है.
गरीबी से जूझ रहे टेकचंद हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के शिष्य थे और आगे खेलकर अपना हुनर दिखाते थे, लेकिन अब यह वृद्ध झोपड़ी में रहने को मजबूर हो गया है. टेकचंद ने अपनी 8 महीने की बेटी को गरीबी के कारण खो दिया क्योंकि उसका इलाज नहीं हो सका। बेटी के बाद उसकी पत्नी की टीबी का इलाज न होने के कारण मौत हो गई। कभी स्टार हॉकी खिलाड़ी रहे टेकचंद आज इतनी गरीबी में जी रहे हैं कि उनके पास दो वक्त का खाना या सिर पर छत तक नहीं है और वह झुग्गी में रह रहे हैं.
रिपोर्ट्स का कहना है कि झोपड़ी की छत से टपकते पानी ने उनके सारे सर्टिफिकेट और मेडल बेकार कर दिए हैं. हालांकि इस दौरान उनके आसपास का समाज जरूर उनके समर्थन के लिए आगे आया है। मध्य प्रदेश के सागर स्थित एक रेस्टोरेंट ने उनके दो वक्त के खाने का ख्याल रखा है. गौर करने वाली बात यह है कि इतिहास रचने वाले इस खिलाड़ी को सरकार की ओर से महज 600 रुपए महीना मिलता है और इतनी कम रकम में उसे दो वक्त की रोटी का भी राशन नहीं मिल पा रहा है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 82 साल की उम्र में उनके पास मजदूरी करने की भी ताकत नहीं है। गौरतलब है कि 1961 में जिस भारतीय टीम ने हॉलैंड को हराकर हॉकी मैच में इतिहास रचा था, टेकचंद उस टीम के अहम खिलाड़ी थे. हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले और मोहर सिंह जैसे स्टार खिलाड़ियों के गुरु कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद के शिष्य की दुर्दशा देखकर लगता है कि सरकार को अपने राष्ट्रीय खेल 'हॉकी' के खिलाड़ियों की कोई परवाह नहीं है.