ग्वालियर। ग्वालियर में कूट रचित दस्तावेजों के जरिए चिटफंड कंपनी की फ्रिज की हुई रकम को निजी खाते में ट्रांसफर कराने की कोशिश की गई है। इस चिटफंड कंपनी की शिकायत आज से 4 साल पहले जनवरी 2017 को की गई थी। जिस पर आज अदालत ने अलग-अलग धाराओं में 20 साल की सजा दी है। अदालत का कहना है, अधिकतम 5 साल तो आरोपी को जेल में बिताने पड़ेंगे।
यह है पूरा मामला
हम आपको बता दें, आज से 4 साल पहले जनवरी 2017 में आरोपी प्रदीप मिश्रा ने जिला न्यायालय, हाई कोर्ट, और पुलिस अधीक्षक कार्यालय के फर्जी सील, सिक्के के जरिए दस्तावेज तैयार किए थे। आरोपी प्रदीप भिंड के रहने वाले हैं। उसने सिटी सेंटर स्थित आईसीआईसीआई बैंक में पहुंचकर खुद को कोर्ट का कर्मचारी बताया था। और किसी हरदीप सिंह के खाते से करीब 17 लाख रुपए ट्रांसफर करने के लिए बैंक पर दबाव बनाया था।
शंका पर की तहकीकात
तब आईसीआईसीआई बैंक के मैनेजर को व्यक्ति द्वारा पेश किए गए कागजात की पिटीशन नंबर नहीं मिली, तो उन्हे कुछ शंका हुई और उन्होंने उसकी लीगल सेल में तहकीकात करनी शुरू कर दी। तो पता लगा कि ना तो हाईकोर्ट ने कोई रकम ट्रांसफर का आर्डर जारी किया है और ना ही जिला सत्र न्यायालय द्वारा कोई आदेश जारी किया गया है। इसके अलावा पुलिस अधीक्षक कार्यालय का जो पत्र पेश किया गया था, जब उसकी जांच की गई तो वह भी फर्जी निकला।
लगाया गया 19000 रुपए का अर्थदंड
आरोपी प्रदीप मिश्रा ने जनवरी की अलग-अलग तारीखों में यह फर्जी दस्तावेज बनवाकर बैंक में पेश किए थे। धोखाधड़ी का पता चलने पर क्राइम ब्रांच ने प्रदीप मिश्रा और विकास मोरे के खिलाफ मामला दर्ज किया था। निवेशक से विवाद के चलते चिटफंड कंपनी केएमजे लैंड डेवलपर के खाते, कोर्ट द्वारा फ्रिज किए जा चुके हैं। जिन में लाखों की रकम जमा है। इसी रकम को हथियाने के लिए प्रदीप मिश्रा ने यह प्रपंच अपने सहयोगी विकास बोहरे के साथ मिलकर रचा था। लेकिन विकास बोहरे के खिलाफ कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं मिलने पर उसे बरी किया गया है । जबकि प्रदीप मिश्रा को 5 साल की सजा सुनाई गई है। उस पर 19000 रुपए का अर्थदंड भी लगाया गया है।