मुंबई, 11 मई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। देश में चल रहे देशद्रोह कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सख्त फैसला दिया है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि जब तक IPC की धारा 124-ए की री-एग्जामिन प्रोसेस पूरी नहीं हो जाती, तब तक इसके तहत कोई मामला दर्ज नहीं होगा। साथ ही पहले से दर्ज मामलों में भी कार्रवाई नहीं होगी। वहीं, इस धारा में जेल में बंद आरोपी भी जमानत के लिए अपील कर सकते हैं। इधर, कोर्ट के फैसले पर केंद्रीय कानून मंत्री ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने कहा कि हम कोर्ट और इसकी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं, लेकिन एक लक्ष्मण रेखा है, जिसका सम्मान सभी अंगों द्वारा किया जाना चाहिए। कानून मंत्री ने आगे कहा कि हमने अपनी स्थिति बहुत स्पष्ट कर दी है और PM मोदी के इरादे के बारे में भी कोर्ट को सूचित कर दिया है। इसके पहले सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि IPC की धारा 124-ए पर रोक न लगाई जाए। हालांकि, उन्होंने यह प्रस्ताव दिया है कि भविष्य में इस कानून के तहत FIR पुलिस अधीक्षक की जांच और सहमति के बाद ही दर्ज की जाए।
केंद्र ने कहा संज्ञेय अपराध को दर्ज होने से नहीं रोका जा सकता है। कानून के प्रभाव पर रोक लगाना सही नहीं हो सकता, इसलिए जांच के लिए एक जिम्मेदार अधिकारी होना चाहिए। मामला तभी दर्ज हो, जब वह कानून के तहत तय मानकों के अनुरूप हो। SG तुषार मेहता ने कहा कि देशद्रोह के लंबित मामलों की गंभीरता का पता नहीं है। इनमें शायद आतंकी या मनी लॉन्ड्रिंग का एंगल है। वे कोर्ट में विचाराधीन हैं, और हमें उनके फैसलों का इंतजार करना चाहिए।
केंद्र ने यह दलील भी दी कि कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा बरकरार रखे गए देशद्रोह के प्रावधानों पर रोक लगाने के लिए आदेश देना सही तरीका नहीं हो सकता है। केंद्र ने आगे कहा कि जहां तक लंबित मामलों का सवाल है, संबंधित अदालतों को आरोपियों की जमानत पर शीघ्रता से विचार करने का निर्देश दिया जा सकता है। गौरतलब है कि देशद्रोह के मामलों में धारा 124-ए से जुड़ी 10 से ज्यादा याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, TMC सांसद महुआ मोइत्रा समेत पांच पक्षों की तरफ से देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई थी। मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आज के समय में इस कानून की जरूरत नहीं है। इस मामले की सुनवाई CJI एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच कर रही है। इस बेंच में जस्टिस सूर्यकांत त्रिपाठी और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल हैं। CJI एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत त्रिपाठी और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने यह भी आदेश दिया है कि इसके बाद भी यदि कोई नया केस दर्ज किया जाता है तो पीड़ित पक्ष कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। निचली अदालतों से भी अपील है वे पारित आदेश को ध्यान में रखते हुए मांगी गई राहत की जांच करें।
आपको बता दे बीते दिनों केंद्र सरकार ने 1870 में बने यानी 152 साल पुराने राजद्रोह कानून (IPC की धारा 124-ए) पर सुप्रीम कोर्ट में जवाब दायर किया। इसके बाद कोर्ट ने केंद्र को इस कानून के प्रावधानों पर फिर से विचार करने की अनुमति दे दी। इस कानून पर याचिकाएं दायर करने वालों में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा, छत्तीसगढ़ के कन्हैयालाल शुक्ला शामिल हैं। गौरतलब है कि कपिल सिब्बल ने कोर्ट में जानकारी दी है कि देशद्रोह कानून के तहत देशभर की जेलों में 13 हजार लोग आज तक बंद हैं। इस कानून में गैर-जमानती प्रावधान हैं। यानी भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ नफरत, अवमानना, असंतोष फैलाने को अपराध माना जाता है। आरोपी को सजा के तौर पर आजीवन कारावास दिया जा सकता है।